सच्ची खुशी साधनों के ढेर पर नहीं स्वयं के भीतर है|"- ब्रह्माकुमारी ज्योति
इंदौर 2 जून | कस्तूरी के मृग के भांति आज हर मनुष्य खुशी को ढूंढ रहा हैं| परंतु सच्ची खुशी साधनों के ढेर पर बैठने से नहीं बल्कि खुद के भीतर जाने से प्राप्त होती हैं| व्यक्ति बचपन में तो बहुत खुश रहता हैं| परंतु जैसे-जैसे वह बड़ा होता हैं खुशी भी छूमंत्र सी हो जाती है| फिर दौड़ आता हे खुशी की खोज का और वह आजीवन चलता रहता हैं|उक्त विचार ब्रह्माकुमारी ज्योति ने संस्था में आयोजित सप्त दिवसीय ज्ञान मंथन प्रवचन माला के दौरान पांचवें दिन के सत्र में भाईजी सभागार ज्ञानशिखर में दिए |
आगे आपने कहा कि मनुष्य की इच्छाओं ने उसे दुःख और शांति के कलह क्लेश के सागर में ऐसे डुबो दिया हैं जो उसे बाहर निकल पाना असंभव सा लगता है| वर्तमान में सब कुछ होते भी वह सुखों का आनंद नहीं ले पा रहा तथा भविष्य में होने वाली अनिश्चित प्राप्तियों से खुशियां बटोरने के ख्वाब देख रहा हैं|
आज मनुष्य अंदर से पूरा खाली हो चुका हैं| इसलिए सदा असंतुष्ट रहता हैं|यदि हम जीवन रूपी सागर में परिस्थितियों रूपी लहरों से खुश रहना सीख ले तो हम भी दूसरों के लिए खुशी के आदर्श बन सकते हैं| हमारे व्यक्तित्व के विकास तथा जीवन के निर्माण के लिए हमें पूर्णतः सकारात्मक सोच रखना अति आवश्यक हैं |क्योंकि सकारात्मक सोच ही सभी परिस्थितियों में खुश रहने का आधार हैं| ब्रह्माकुमारी ज्योति के प्रेरणादाई उद्बोधन से लगभग सैकड़ो लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा ज्ञान शिखर गूंज उठा| कार्यक्रम का संचालन ब्रह्माकुमारी टिकेश्वरी ने किया|
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