भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर और हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय कृषि प्रबंधन संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से सोयाबीन उत्पादकता बढ़ाने के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन



इंदौर 21 मई 2021 भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर और हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय कृषि प्रबंधन संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से 18-21 मई 2021 के दौरान "सोयाबीन उत्पादकता बढ़ाने के लिए जलवायु स्मार्ट प्रौद्योगिकी और पद्धतियाँ "  विषय आयोजित ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का आज वर्चुअल मोड ज़ूम के माध्यम से समापन हो गया जिसमे माननीय पी. चंद्रशेखर, महानिदेशक, राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान, हैदराबाद तथा डॉ. नीता खांडेकर, निदेशक एवं भाकृअनुप-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, के सभी कर्मचारियों की उपस्थिति में सोयाबीन की खेती किये जाने वाले राज्यों के कृषि विज्ञान केन्द्रों एवं कृषि विघगो में कार्यरत 160 प्रशिक्षनार्थियों को प्रमाणपत्र वितरित किये गए. आईसीएआर-आईआईएसआर ने इस अवसर पर एक नया समाचार कार्यक्रम "आईसीएआर-मध्य भारत समाचार" भी लॉन्च किया, जिसमें आईआईएसआर के कृषि वैज्ञानिकों के साथ-साथ मध्य भारत में स्थित अन्य आईसीएआर संस्थानों के वैज्ञानिक सम-सामयिक विषयों पर चर्चा-सत्र एवं तकनिकी सलाह  सम्बन्धी  एपिसोड बनाकर भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संसथान के यूट्यूब चैनल "आईआईएसआरएस सोयाबीन इंदौर" पर अपलोड कर कृषको के हित में प्रसारित किये जायेंगे.  

प्रशिक्षण कार्यक्रम के इस समापन समारोह के अवसर पर प्रतिभागियों को अपने संक्षिप्त संबोधन में, मुख्य अतिथि डॉ. चंद्रशेखर ने किसानों से सामूहिक रूप से फार्म प्रोड्यूसर्स कंपनी बनाने का अनुरोध किया ताकि उगाई गई फसल का वास्तविक लाभ प्राप्त किया जा सके क्योंकि लाभ का बड़ा हिस्सा बिचौलियों द्वारा ले लिया जाता है। उन्होंने केवीके और कृषि विभाग के साथ काम करने वाले कर्मचारियों को बाजार की आवश्यकता अनुसार विस्तार कार्यक्रमों की उपयुक्तता को ध्यान में रखते हुए फसल उत्पादन से अधिक ध्यान फसल के विपणन पर केंद्रित किये जाने की अनुशंसा की। उनके अनुसार, कृषि में प्रौद्योगिकी वितरण के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रही छोटी-बड़ी सभी विस्तार एजेंसियों जन भागीदारी की तर्ज पर कार्य करने की सलाह दी।

इस अवसर पर अपने संक्षिप्त संबोधन में, डॉ. नीता खांडेकर ने बताया की वैज्ञानिको को तकनिकी विकास के साथ साथ विकसित तकनिकी को कृषकों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए शुरुवात में तकनिकी को विकसित करने वाले वैज्ञानिको को पहल करनी होगी, जिसके बाद विस्तार कार्यकर्ताओं को तकनिकी हस्तांतरण की प्रक्रिया को गति देने में सुविधा होगी जिससे तकनिकी का अंगीकरण भी बढेगा.  इस अवसर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम के सफल आयोजन हेतु मुख्य अतिथि एवं निदेशक द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बी. यू. दुपारे एवं डॉ. सविता कोल्हे की भरपूर प्रशंसा की. कार्यक्रम का सञ्चालन दफर. सविता कोल्हे ने किया जबकि डॉ बी. यू.दुपारे, प्रधान वैज्ञानिक (कृषि विस्तार) ने धन्यवाद् ज्ञापित किया 

समापन सत्र से पहले, इस अवसर पर आयोजित एक तकनीकी सत्र में, डॉ. देवव्रत सिंह, प्रधान वैज्ञानिक (कृषि मशीनरी) ने भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान द्वारा विकसित विभिन्न मशीनों और कृषि उपकरणों जैसे ब्रॉड बेड फ़रो (BBF) सीड ड्रिल, FIRB (रिज एंड फ़रो) सीड ड्रिल, और सब-सॉइलर के उपयोग बढ़ने की सलाह दी जिनके उपयोग से नमी संरक्षण के साथ-साथ जल निकासी के कार्य भी सुगम हो जाते है जिससे प्रतिकूल मौसम की स्थिति में सोयाबीन की फसल को संरक्षित किया जा सकता हैं । उन्होंने विशेष रूप से किसानों को आगाह किया कि जलभराव की स्थिति से सोयाबीन की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं । उनके अनुसार, सोयाबीन किसानों को 3-5 वर्षों में एक बार अपने खेत में सब-सॉइलर यन्त्र का प्रयोग करना चाहिए जो कि सूखे जैसी प्रतिकूल जलवायु स्थिति में भी फसल के लिए उपयोगी भू-जल धारण क्षमता को बढ़ाता है 

इसी प्रकार, डॉ. मृणाल कुचलन, वरिष्ठ वैज्ञानिक (बीज प्रौद्योगिकी) ने सोयाबीन बीज क्षेत्र के समग्र परिदृश्य पर चर्चा करते हुए किसानों को बीज उत्पादन में आत्मनिर्भरता लाने हेतु प्रयास करने की सलाह दी. उनके अनुसार गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन के लिए कुछ विशिष्ट पद्धतियाँ जैसे अवांछित पौधों के निष्कासन,  सही समय पर कटाई और 350 -450 आरपीएम पर गहाई कर किसान अपने ही खेत से अगले वर्ष की आवश्यकता पूर्ति कर सकते हैं । उन्होंने किसानों को बीज की पैकेजिंग और भंडारण से पहले बीज सेपरेटर जैसी सस्ती मशीन का उपयोग करते हुए प्रसंस्करण किये जाने की सलाह दी. इस प्रकार से बने बीज को बोरियों में भरकर लकड़ी के प्लेटफार्म पर नमी मुक्त और हवादार भंडारण गृह में रखने का आवाहन किया  सोयाबीन में अजैविक तनाव पर एक अन्य सत्र में, प्रधान वैज्ञानिक डॉ महाराज सिंह ने किसानों को सोयाबीन की फसल के महत्वपूर्ण विकास चरणों में सिंचाई करने और लंबे समय तक जलभराव की स्थिति से बचने के लिए आमंत्रित किया।


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