नव वर्ष 2021 कविता - कंचन पाठक






' साल बीते कई साल आए कई ''


वक्त की धार, चलती चली जा रही
कुछ तरंगें नई, कुछ रवानी नई
मौसमों के बदलते निगाहों तले
साल बीते कई, साल आए कई .


सूखे गमलों की मिट्टी भिगोया करो
इश्क के गीत पलकों में बोया करो
पतझड़ों की उदासी को महसूस कर
खिड़कियों दो घड़ी तुम भी रोया करो
एक इंसान फ़ितरत हज़ारों लिए
लिख रहा हर घड़ी, इक कहानी नई.
मौसमों के, बदलते निगाहों तले
साल बीते कई, साल आए कई .


उनके अंदाज में कुछ जुदा-सा लगा
पत्थरों में भी कोई ख़ुदा-सा लगा
मेरे बादल मुझी पर बरस कर गए
हर घड़ी की थपक तयशुदा सा लगा
बात पहुँची न साहिल तलक आज तक
रेत में आँसुओं की कहानी नई.

ज़श्न उम्मीदों की हम किए जा रहे
आने दो कोई मीठी सी सौगात को
दिन निराशा के जाओ विदा अब तुम्हें
कोई तो अब पठाओ हंसीं रात को
चाँद तारे लिखेंगे बहारों में फिर
वक़्त की सलवटों पर कहानी नई.


मौसमों के बदलते निगाहों तले
साल बीते कई, साल आए कई .

 

कंचन पाठक


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