वैलेनटाइन डे स्पेशल💗💕💞

"प्रेम दिल में बसता है, दिमाग में नहीं" 


बसन्त के आगमन के साथ ही प्रकृति के कण-कण में हर्ष उल्लास आनन्द और प्रेम का वातावरण चहुंओर दिखाई देने लगता है।पशु पक्षी मानव सभी बसन्त के प्रभाव से प्रभावित अवश्य होते हैं। प्राचीन काल में भी मदनोत्सव पर्व के रूप में मनाया जाता था। प्रेम स्वस्थ वातावरण,


में सुहाने मौसम में दिलों की उपजाऊ भूमि पर पनपता है। वर्तमान समय में प्रेम का प्रतीक एक टैडी, चाकलेट या फिर गुलाब बन गया है। क्या प्रेम को इनसे बाँधा जा सकता है, हम तो सनातनी विचार धारा के लोग हैं, बिना किसी शर्त के प्रेम माँ पिता में देखा,भाई बहनों में देखा,दोस्तों में देखा,बच्चों में देखा,फिर शादी के बाद परिवार में,परिवार की पहली सीढ़ी प्रेम ही है।शादी के इतने साल बीत गये आश्चर्य कभी प्रपोज डे,हग डे,या वैलेंटाइन डे नहीं मनाया,इसमें कुछ स्पेशल लगा ही नहीं, प्रेम को एक दिन दो दिन या सात दिनों में कैसे बाँध सकते हो, वो तो सात फेरों के साथ सात जन्म की बात बचपन से पढ़ते सुनते चले आ रहे हैं, हमारी दादी माँ नानी माँ  हमेशा कहती थी हमें सात जन्म तक तुम्हारे दादा जी ही मिलें आह कितना समर्पण,कितना प्रेम बिना शर्त के था। प्रेम के ये सात वचन,जीवन भर जीवन साथी को एक दूसरे से जोड़े रखते हैं। प्रेम शरीर से नहीं होता है,इसका संबंध तो मन का मन से होता है,प्रेम जुनून है,समर्पण है,विश्वास है,श्रद्धा है। आज प्रेम का पर्याय बनें राधा कृष्ण एक दूसरे में समर्पित रहे,दो शरीर एक आत्मा अद्भुत प्रेम इससे भी अधिक मीरा का प्रेम जो सारी दुनिया से बेखबर कृष्ण के प्रेम में मदमस्त होकर कृष्ण में समा जाता है। यह है प्रेम की पराकाष्ठा कृष्ण से शुरू कृष्ण पर खत्म।मीरा के प्रेम में मीरा का अस्तित्व कहीं नहीं हैं सिर्फ प्रेम है। प्रेम’ को भौतिक पैमाने पर नहीं आंका जा सकता और न ही ‘प्रेम’ को शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है।आज की जनरेशन महज वैलेंटाइन डे के नाम पर सिर्फ विदेशी संस्कृति का अनुकरण करती है, ,घूमना फिरना, मौज मस्ती करना, शराब पीना ,पार्टी करना,फिल्में देखना,मंहगे रेस्टोरेंट में खाना खाना, ग्रीटिंग कार्ड, टैडीबियर, चाकलेट आदि तोहफे देना।बस इनका प्रेम इतना है , सिर्फ दो चार महीने का आकर्षण, फिर अगले वर्ष प्रेम बदल गया ,वैलेंटाइन का नया चेहरा, फिर वही नौटंकी। यह है आज का प्रेम। भारत भूमि पर प्रेम की गंगा युगों से बहती रही है कितने प्रेमीयुगल ने इस आनन्द के महासागर में गोते लगाये डूबे उबरे और अमर हो गए। प्रेम तो बस दिल की कोमल और गहरी भावनाओं से सहज रूप में अनुभव किया जा सकता है। ‘प्रेम’ के बारे में सत्य ही कहा गया है ‘प्रेम’ किया नहीं जाता, हो जाता है। प्रेम दिल में बसता है, दिमाग में नहीं।



डॉ ज्योत्स्ना सिंह राजावत


असिस्टेंट प्रोफेसर


सी-111गोविन्दपुरी


ग्वालियर


 


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