जिनगी को सच
* यां जिनगी पतंग ने डोर से कम नी,
* इमे कदी सुख नी ने कदी दुख नी,
* मिली जुली ने मनय लां संक्रांति के,
* इनी दुनिया में कदी हूं नी कदी तम नी,
* यो ज सत्य हे जिनगी को,
समझी लो तो ज्ञानी नी तो दुख नी ।
* पतंग कटे डोर से ओझल हुई जाय,
* मनक कटे अपणा से, बोझल हुय जाय।
* रिश्तों निभावजो सगला से,
* जिनगी सफल हुय जाय।
हेमलता शर्मा "भोली"
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